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देखे सूँ तुझ लबाँ के उपर रंग-ए-पान आज
चूना हुए हैं लाला रूख़ाँ के पिरान आज
निकला है बेहिजाब हो बाज़ार की तरफ़
हर बुलहवस की गर्म हुई है दुकान आज
तेरे नयन की तेग़ सूँ ज़ाहिर है रंग-ए-ख़ून
किस कूँ किया है क़त्ल ऐ बांके पठान आज
आखि़र कूँ रफ्त़ा-रफ्त़ा दिल-ए-ख़ाकसार ने
तेरी गली में जाके किया है मकान आज
कल ख़त ज़बान-ए-हाल सूँ आकर करेगा उज्र
आशिक़ सूँ क्या हुआ जो किया तूने मान आज
तेरी भवाँ कूँ देख के कहते हैं आशिक़ाँ
है शाह जिसके नाम चढ़ी है कमान आज
गंगा रवाँ किया हूँ अपस के नयन सिती
आ रे समन शिताब है रोज़-ए-नहान आज
क्यूँ दायरे सूँ ज़ुहरा जबीं के निकल सकूँ
यक तान में लिया है मिरे दिल कूँ तान आज
मेरे सुख़न कूँ गुलशन-ए-मा'नी का बोझ गुल
आशिक़ हुए हैं बुलबुल-ए-रंगी बयान आज
जोधा जगत के क्यूँ न डरें तुझ सूँ ऐ सनम
तर्कश में तुझ नयन के हैं अर्जुन के बान आज
जानाँ कूँ बस कि ख़ौफ़-ए-रकीबाँ है दिल मनीं
होता है जान बूझ हमन सूँ अजान आज
क्यूँ कर रखूँ मैं दिल कूँ 'वली' अपने खेंचकर
नईं दस्त-ए-अख्ति़यार में मेरे इनान आज
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अब जुदाई न कर ख़ुदा सूँ डर
बेवफ़ाई न कर ख़ूदा सूँ डर
रास्त कैशाँ सूँ ऐ कमाल अबरू
कज अदाई न कर खुदा सूँ डर
मत तग़ाफ़ुल कूँ राह दे ऐ शोख़
जगहँसाई न कर खुदा सूँ डर
है जुदाई में ज़िदगी मुश्किल
आ, जुदाई न कर खुदा सूँ डर
आशिक़ाँ कूँ खहीद कर के सनम
कफ़हिनाई न कर खुदा सूँ डर
आरसी देखकर न हो मग़रूर
ख़ुदनुमाई न कर खुदा सूँ डर
उस सूँ जो आशना-ए-दर्द नहीं
आशनाई न कर खुदा सूँ डर
रंग-ए-आशिक़ ग़ज़ब सूँ ऐ जा़लिम
कुहरबाई न कर खुदा सूँ डर
ऐ 'वली' ग़ैर-ए-आस्ताना-ए-यार
जुब्बा साई न कर खुदा सूँ डर
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ऐ बाद-ए-सबा बाग़ में मोहन के गुज़र कर
मुझ दाग़ की इस लालए-ख़ूनीं कूँ ख़बर कर
क्या दर्द किसी कूँ कि कहे दर्द मिरा जा
ऐ आह मिरे दर्द की तूँ जाके ख़बर कर
सब तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल कूँ मिरे हक़ में रवा रख
ऐ शोख़ मिरी आह सूँ अलबत्ता हज़र कर
दूजा नहीं ता पी सूँ कहे दिल की हक़ीक़त
ऐ दर्द तू जा जीव में उस पी के असर कर
क्या ग़म है उसे तौर-ए-हवादिस सूँ जहाँ में
बूझा जो कोई गर्दिश-ए-साग़र कूँ सपर कर
कई बार लिखा उसकी तरफ़ नामे कूँ लेकिन
हर बार सटा अश्क ने मुझ नामे कूँ तर कर
हर वक़्न सट कुलहे-ए-तगाफ़ल कूँ अँखाँ में
टुक मेहर सूँ इस तरफ़ ऐ बेमहर नज़र कर
उस साहिब-ए-दानिश सूँ 'वली' है ये तअज्जुब
यकबारगी क्यूँ मुझकों गया दिल से बिसर कर
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ऐ सर्व-ए-ख़रामाँ तूँ न जा बाग़ में चलकर
मत क़मरी-ओ-शम्शाद के सौदे में ख़लल कर
कर चाक गरेबाँ कूँ गुलाँ सेहन-ए-चमन में
आये हैं तिरे शौक़ में पर्दे सूँ निकल कर
सन्अत के मुसव्विर ने सबाहत के सफ़्हे पर
तस्वीर बनाया है तिरी नूर कूं हल कर
ऐ नूर-ए-नज़र शम्अ कूँ देखा हूँ सरापा
तुझ इश्क़ की आतिश सिती काजल हुआ जलकर
बेआब लगे आब-ए-हयात उसकी नज़र में
पानी हुआ तुझ गाल के जो इश्क़ में गलकर
तुझ अबरू-ए-ख़मदार सूँ हर्गिज़ न फिरे दिल
क्यूँ जावे सिपाही दम-ए-शम्शीर सूँ टल कर
ऐ जान-ए-'वली' लुत्फ़ सूँ आ बर में मिरे आज
मुझ आशिक़-ए-बेकल सिती मत वादा-ए-कल कर
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अजब नहीं जो करे दिल में शेख़ की तासीर
अगर मुक़द्दमए-इश्क़ कूँ करूँ तहरीर
जुनून-ए-इश्क़ हुआ इस क़दर ज़मीं को मुहीत
कि पारसा कूँ हुई मौज-ए-बोरिया ज़ंजीर
ज़बान-ए-क़ाल नहीं तिफ़्ल-ए-अश्क कूँ लेकिन
ज़बान-ए-हाल सूँ करते हैं इश्क़ की तक़रीर
सफ़े पे चेहरा-ए-उश्शाक़ के मुसव्विर-ए-इश्क़
जिगर के ख़ूँ सों लिखा तिफ़्ल-ए-अश्क की तस्वीर
गली सूँ नेही की क्यूँ जा सकूँ 'वली' बाहर
हुई है ख़ाक परी रू की रह की दामनगीर
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हुआ नहीं वो सनम साहिब-ए-इख़्तियार हनोज़
बजाय ख़ुद है रक़ीबाँ का ऐतबार हनोज़
परी रुख़ाँ की झलक का किया हूँ बसकि ख़याल
बरंग-ए-बर्क़ मिरा दिल है बेक़रार हनोज़
हज़ार बुलबुल-ए-मिस्कीं का सैद है बाक़ी
मुक़ीम है चमन-ए-इश्क़ में बहार हनोज़
बजा नहीं तुझे इनकार ख़ून-ए-आशिक़ सूँ
गया नहीं है तिरे हाथ सूँ निगार हनोज़
अपस की चश्म की गर्दिश सूँ दे प्याला मुझे
गया नहीं है मिरी चश्म सूँ ख़ुमार हनोज़
बजाय ख़ुद है ऐ रंगीं बहार गुल फित़रत
तिरी पलक का मिरे दिल में ख़ार-ख़ार हनोज़
चले हैं आहू-ए-मुश्कीं ख़तन सूँ सुन के कि है
निगाह-ए-शौख़सनम दर-पए-शिकार हनोज़
'वली' जहाँ के गुलिस्ताँ में हर तरफ़ है खि़ज़ाँ
वले बहाल है वो सर्व-ए-गुल इज़ार हनोज़
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सजन की ख़ुर्दसाली पर ख़ुदा नाज़िर ख़ुदा हाफ़िज़
रक़ीबाँ की मलामत सूँ मुहम्मद मुस्तफ़ा हाफ़िज़
सजन के हुस्न-ए-अफ़्ज़ूँ पर ख़ुदाया तू अमां करना
कि इस उम्मीद-ए-गुलशन पर अली मुर्तुज़ा हाफ़िज़
सजन के तेग़ अबरू सूँ शहादतगाह पाँवों में
मिरे इस क़त्ल होने पर शहीद-ए-कर्बला हाफ़िज़
सजन का मुख मुनव्वर, नूर आयत, फ़ाल मुस्हिफ़ है
कि अहल-ए-नामुरादाँ पर दुआ-ए-हलअता हाफ़िज़
'वली' ग़मगीं न हो ये भेद असरार-ए-इलाही है
कि तेरी दस्तगीरी पर निगाह-ए-दिलरुबा हाफ़िज़
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मुद्दत हुई सजन ने दिखाया नहीं जमाल
दिखला अपस के क़द कूँ किया नईं मुझे निहाल
यक बार देख मुझ तरफ़ ऐ ईद-ए-आशिक़ाँ
तुझ अबरुआँ की याद सूँ लाग़र हूँ ज्यूँ हलाल
वो दिल कि था जो सोख्त़ा-ए-आतिश-ए-फि़राक़
पहुँचा है जा के रुख़ कूँ सनम के बरंग-ए-ख़ाल
गर मुज़तरिब हैं आशिक-ए-बेदिल अजब नहीं
वहशी हुए हैं तेरी अँखाँ देख के ग़ज़ाल
फैज़-ए-नसीम-ए-मेहर-ओ-वफ़ा सूँ जहान में
गुलज़ार तुझ बहार का है अब तलक बहाल
खोया है गुलरुख़ाँ ने रऊनत से आब-ओ-रंग
गर्दनकशी है शम्अ की गर्दन उपर बवाल
हरगिज़ न देवे रस्मे-वफ़ा हाथ सूँ 'वली'
यक बार इस ग़ज़ल कों सुने गर गोविंद लाल
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मेरी निगह के रह पे फ़र्ख़ंदा फ़ाल चल
है रोज़-ए-ईद आज ऐ अबरू हिलाल चल
तेरी नयन की दीद कूँ ऐ नूर-ए-हर नज़र
शक नईं अगर ख़तन सिती आवें ग़ज़ाल चल
मुमकिन नहीं है तन की तरफ़ उसकी बाज़गश्त
जो दिल गया है दिलबर-ए-दिलकश की नाल चल
पीतम की ज़ुल्फ़-ए-पेच दिसा मुझ सवाद-ए-हिंद
इस राह-ए-मार बीच में ऐ दिल सम्हाल चल
वहदत के मैकदे में नहीं बार होश कूँ
उस बेख़ुदी के घर की तरफ़ सुध को डाल चल
ऐ बेख़बर अगर है बुज़ुर्गीं की आरज़ू
दुनिया की रह गुज़र में बुज़ुर्गां की चाल चल
गर आकिब़त की मुल्क की ख्व़ाहिश है सल्तनत
खुशख़स्लती के मुल्क में ऐ ख़ुशख़साल चल
आया तिरी तरफ़ जो 'वली' तो अजब नहीं
आते हैं तुझ गली मिनीं साहिब कमाल चल
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तुझ मुख उपर हे रंग-ए-शराब-ए-अयाग़-ए-गुल
तेरी ज़ुलफ़ है हल्क़ए-दूद-ए-चिराग़-ए-गुल
माशूक़ कूँ ज़हर नहीं आशिक़ की आह सूँ
बुझता नहीं है बाद-ए-सबा सूँ चिराग़-ए-गुल
रहता है दिल पिया के तफ़ह्हुस में रात-दिन
है कार-ए-अंदलीब हमेशा सुराग़-ए-गुल
आशिक़ मुदाम हाल-ए-परीशाँ सूँ शाद है
आशुफ़्तगी के बीच है दायम फ़राग़-ए-गुल
तुझ दाग़ सूँ हुआ है चमनज़ार दिल मिरा
ऐ शोख़ आके देख तमाशा-ए-बा-ए-गुल
चलते हैं पी के शौक़ सूँ उश्शाक़ रात दिन
है दिल में बुलबुलाँ के शब-ओ-रोज़ दाग़-ए-दिल
यूँ तुझ सजन में नश्शा-ए-मा'नी है ऐ 'वली'
ज्यूँ रंग-ओ-बू की मै सूँ है लबरेज़ अयाग़-ए-दिल
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तुझ बेवफ़ा के संग सूँ है पारा-पारा दिल
रेज़श में तुझ जफ़ा सूँ है मिस्ल-ए-सितारा दिल
लर्जा़ है तब सूँ रा'शा-ए-सीमाब की नमत
जब सूँ तिरी पलक का किया है नज़ारा दिल
तुझ मुख के आफ़ताब की गर्मी कूँ देखकर
जल शौक़ की अगन सूँ हुआ ज्यूँ अँगारा दिल
बेशक शफ़ा-ए-ख़ातिर-ए-बीमार हो तधाँ
तुझ लब के जब तबीब सिती पावे चारा दिल
आवे अगर 'वली' के सिने के महल में तू
देखे तिरे जमाल कूँ फिर कर दुबारा दिल
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नाज़ मत कर तुझे अदा की क़सम
बेतकल्लुफ़ हो मिल ख़ुदा की क़सम
ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ है तिरा जो लैल-ओ-नहार
मुझकूँ वल्लैल-ओ-वलज़हा की क़सम
सर्व क़द कूँ कुशीदा क़ामत-ए-यार
रास्त बोल्या हूँ तुझ अदा की क़सम
मुस्हफ़-ए-रुख़ तिरा है सूरत-ए-फ़ख़
मुझकूँ वन्नज्म इज़ा हवा की क़सम
ज़ुल्म मत कर सजन 'वली' ऊपर
तुझ कूँ है शाह-ए-कर्बला की क़सम
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ज्यूँ गुल शगुफ़्ता रू हैं सुख़न के चमन में हम
ज्यूँ शम्अ सर बुलंद हैं हर अंजुमन में हम
हम पास आके बात 'नज़ीरी' की मत कहो
रखते नहीं नज़ीर अपस की सुख़न में हम
हैं दास्ताँ बरा मनीं मुझ याद कई हज़ार
उस्ताद बुलबुलाँ के हैं हर यक चमन में हम
ख़ूबाँ जगत के जीव सूँ मिलते हैं हम सिती
कामिल हुए हैं बस कि मुहब्बत के फ़न में हम
उस शोख़ शौला रंग सूँ जब से लगन लगी
जलते हैं तब सूँ शो'ला नमत उस लगन में हम
यक बार हँस के बोल सनम नईं तो हश्र लग
ज्यूँ बर्क़-ए-बेक़रार रहेंगे कफ़न में हम
हर चंद जग के बख्त़ सियाहों में हैं वले
काजल हो जा बसे हैं सजन के नयन में हम
फ़रहाद तब सूँ तेशा नमन सर किया तले
बाँधे हैं जब सूँ जीव कूँ शीरीं वचन में हम
दो जग हुए हैं दिल सूँ फ़रामोश ऐ 'वली'
रखते हैं जब सूँ याद सिरीजन के मन में हम
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शराब-ए-शौक़ से सरशार हैं हम
कभू बेख़ुद कभी हुशियार हैं हम
दोरंगी सूँ तेरी ऐ सर्व-ए-रा'ना
कभू राज़ी कभू बेज़ार हैं हम
तिरे तस्ख़ीर करने में सिरीजन
कभी नादाँ, कभू अय्यार हैं हम
सनम तेरे नयन की आरज़ू में
कभू सालिम, कभू बीमार हैं हम
'वली' वस्ल-ओ-जुदाई सूँ सजन की
कभू सेहरा, कभू गुलज़ार हैं हम
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क्यूँ न होवे इश्क सूँ आबाद सब हिंदोस्ताँ
हुस्न की देहली का सूबा है मुहम्मद यार ख़ाँ
पेच-ओ-ताब-ए-बेदिलाँ इस वक्त़ पर बेजा नहीं
लटपटी दस्तार सूँ आता है वो नाज़ुक मियाँ
दिल हुए उश्शाक़ के बेताब मानिंद-ए-सिपंद
जब वो निकले हो सवा-ए-ताज़ि-ए-आतिश इनाँ
जिस तरफ़ हो जल्वागर वो आफ़ताब-ए-बेनज़ीर
सुब्ह के मानिंद होवे रंग-ए-रू-ए-गुलरुख़ाँ
कब नज़र आवेगा या रब वो जवान-ए-तीर क़द
जिसके अबरू के तसव्वुर ने किया मुझको कमाँ
ऐ 'वली' गर मेहरबाँ हो वो चमन आरा-ए-हुस्न
ख़ातिर-ए-नाशाद होवे रश्क-ए-गुलज़ार-ए-जिनाँ
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क़रार नईं है मिरे दिल कूँ ऐ सजन तुझ बिन
हुई है दिल में मिरे आह शो'ला ज़न तुझ बिन
शिताब बाग़ में आ ऐ गुल-ए-बहिश्ती रू
कि बुलबुलां कूँ जहन्नुम हुआ चमन तुझ बिन
चमन की सैर सूँ नफ़रत है इस सबब कि मुझे
सफ़ेद दाग़ सूँ मकरूह है समन तुझ बिन
ऐ रश्क-ए-चश्मए-ए-खि़ज्र अपने मुख शम्अ दिखा
कि है बा सुरत-ए-ज़ुल्मात अंजुमन तुझ बिन
'वली' के दिल की हक़ीक़त बयान क्यूँ के करूँ
गिरह हुआ है ज़बाँ पर मिरी सुख़न तुझ बिन
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दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न
देख कर हुस्न-ए-बेहिजाब-ए-सुख़न
ब़ज्म-ए-मा'नी में सर ख़ुशी है उसे
जिसकूँ है नश्शा-ए-शराब-ए-सुखन
राह-ए-मज़्मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
ताक़यामत खुला है बाब-ए-सुख़न
जल्वा पीरा हो शाहिद-ए-मा'नी
जब ज़बाँ सूँ उठा निक़ाब-ए-सुख़न
है तिरी बात ऐ नज़ाकत-ए-फ़हम
लौहे-दीबाचा-ए-किताब-ए-सुख़न
है सुख़न जग मिनीं अदीमुलमिस्ल
जुज़ सुख़न नईं दुजा जवाब-ए-सुख़न
लफ़्ज़-ए-रंगीं है मत्लए-रंगीं
नूर-ए-मा'नी है आफ़ताब-ए-सुख़न
शे'र फ़हमी की देख कर गर्मी
दिल हुआ है मिरा कबाब-ए-सुख़न
उर्फी़-ओ-अनवरी-ओ-ख़ाक़ानी
मुझको देते हैं सब हिसाब-ए-सुख़न
ऐ 'वली' दर्द-ए-सर कभू न रहे
गर मिले संदल-ओ-गुलाब-ए-सुख़न
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आशिक़ के मुख पे नैन के पानी कूँ देख तूँ
इस आरसी में राज़-ए-निहानी कूँ देख तूँ
सुन बेक़रार दिल की अवल आह-ए-शो'ला ख़ेज़
तब इस हरफ़ में दिल की मुआफ़ी कूँ देख तूँ
ख़ूबी सूँ तुझ हुज़ूर-ए-शम्अ दम ज़नी में है
इस बेहया की चर्बज़बानी कूँ देख तूँ
दरिया पे जाके मौज-ए-रवाँ पर नज़र न कर
अँसुआँ की मेरे आके रवानी कूँ देख तूँ
तुझ शौक़ का जो दाग़ 'वली' के जिगर में है
बेताक़ती में उसकी निशानी कूँ देख तूँ
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चलने मिनी ऐ चंचल हाती कूँ लजावे तूँ
बेताब करे जग कूँ जब नाज़ सूँ आवे तूँ
यकबारगी हो ज़ाहिर बेताबिए-मुश्ताक़ाँ
जिस वक्त़ कि ग़म्ज़े सूँ छाती कूँ छुपावे तूँ
गोया कि शफ़क़ पीछे ख़ुर्शीद हुआ ज़ाहिर
जब ओट में पर्दे के चेहरे कूँ छुपावे तूँ
लूली-ए-फ़लक मुख में अंगुश्त-ए-तहय्यर ले
जब पाँव नजाक़त सूँ मजलिस में नचावे तूँ
उश्शाक़ की शादी की उस वक़्त बजे नौबत
मिरदंग की जिस साइत आवाज़ सुनावे तूँ
यकतान सुनाने में जी तान लिया सबने
अब दिल सूँ बिकीं सारे गर भाव बतावे तूँ
तौबा-ए-रियाई सूँ शायद कि करे तौबा
इस वक़्त 'वली' कूँ गर भर जाम पिलावे तूँ
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भड़के है दिल की आतिश तुझ नेह की हवा सूँ
शो'ला निमत जला दिल तुझ हुस्न-ए-शो'ला ज़ा सूँ
गुल के चिराग़ गुल हो यक बार झड़ पड़ें सब
मुझ आह की हिकायत बोलें अगर सबा सूँ
निकली है जस्त कर-कर हर संग दिल सूँ आतिश
चक़माक़ जब फ़लक की झाड़ा है तूँ अदा सूँ
सजदा बदल रखे सर, सर ता क़दम ग़रक़ हो
तुझ बाहया के पर पर आकर हिना हया सूँ
याँ विरद है पिरम का बेहूदा सर कहे मत
ये बात सुन 'वली' की जाकर कहो दवा सूँ
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